COVID-19

#coronavirus #immunity कोरोना वायरस महामारीः क्या हम कभी इम्यून हो पाएंगे? #newsbottle की खास Report

इस समय दुनिया भर में नए कोरोना वायरस के टीके पर रिसर्च चल रही है. रोज़ नई प्रगति की ख़बरें आ रही हैं. लॉकडाउन की वजह से घरों में क़ैद लोगों में ये ख़बरें एक नई उम्मीद जगाती हैं. उन्हें लगता है कि घर में क़ैद रहने के दिन अब ख़तम होने वाले हैं. न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में लॉकडाउन से कुछ रियायतें दी हैं.

लॉकडाउन से कब और कितनी रियायत दी जाएगी, ये इस बात पर निर्भर करता है कि एंटीबॉडी टेस्ट की कितनी ज़रूरत है. अगर हम ये पता कर सकें कि किसी को नए कोरोना वायरस ने संक्रमित किया था और वो ठीक हो चुका है. और अब उसके शरीर में इस वायरस से लड़ने की क्षमता विकसित हो चुकी है. तो ऐसे लोगों को दोबारा काम पर जाने की इजाज़त दी जा सकती है.

इसके लिए पहली शर्त तो ये है कि एक ऐसे एंटीबॉडी टेस्ट को विकसित किया जाए, जो भरोसेमंद हो. क्योंकि हाल ही में भारत में शुरू किए गए एंटीबॉडी टेस्ट को बीच में रोकना पड़ा था. इनके नतीजों पर जानकारों को भरोसा नहीं था.

एंटीबॉडी असल में एक प्रोटीन होती है, जो हमारा शरीर किसी संक्रमण के दौरान बनाता है. इससे हमारे शरीर पर हमला करने वाले वायरस, कीटाणु या किसी अन्य रोगी बनाने वाले जीव को निशाना बनाया जाता है. ये एंटीबॉडी उस विषाणु से लिपट कर उसे ख़त्म कर देते हैं. या फिर हमारे शरीर की इम्यून कोशिकाओं को आदेश देते हैं कि वो इन हमलावर विषाणुओं या कीटाणुओं को ख़त्म कर दें.

किसी भी संक्रमण के बाद हमारे ख़ून में एंटीबॉडी प्रोटीन बची रह जाती हैं. ऐसा इसलिए होता है कि अगर कहीं वो हमलावर वायरस या बैक्टीरिया दोबारा शरीर में आए, तो उसे फिर से ख़त्म किया जा सके.

इंपीरियल कॉलेज लंदन की कैटरीना पोलॉक कहती हैं कि, ‘अभी ये वायरस हमारे शरीर के लिए नया है. अभी हम इसके बारे में बहुत सी नई बातें जान रहे हैं. किसे ये वायरस संक्रमित करता है और ये क्यों सबसे अहम सवाल है. अगर इस वायरस से कोई भी संक्रमित नहीं होगा, तो हमारी चिंता दूर होगी.’

जब भी कोई नया वायरस इंसानों पर हमला करता है. तो हर व्यक्ति का शरीर उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता के मुताबिक़ उससे मुक़ाबला करता है. ये हर इंसान में अलग होती है. जो उसकी उम्र, लड़ने की शक्ति और आनुवांशिक कारणों से निर्धारित होती है.

आम तौर पर संक्रमण होने पर हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है. शरीर में वायरस को निगलने वाली कोशिकाएं फैगोसाइट्स बनने लगती हैं. जल्द ही वायरस को शरीर से मार भगाया जाता है. इसे एडैप्टिव इम्यून रिस्पॉन्स या प्रतिक्रियात्मक प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं.